इक्विटी शेयर के मीनिंग एवं डेफिनेशन जानने का आज आपके पास एक बेहतरीन मौका है. मुझे अच्छे से पता है कि आप इक्विटी, शेयर एवं स्टॉक को लेकर कन्फ्यूजन में होंगे.
इक्विटी – ‘इक्विटी’ कंपनी में कुल स्वामित्व हिस्सेदारी को कहा जाता है. इक्विटी शब्द का प्रयोग स्वामित्व तय करने के लिए किया जाता है.
शेयर – किसी भी कंपनी के कुल संपत्ति के हिस्सेदारी का सबसे छोटी इकाई को शेयर कहा जाता है. कंपनी के हिस्सेदारी रखने वाले व्यक्ति को शेयर धारक कहते हैं जो कंपनी का अल्प मालिक होता है.
स्टॉक – शेयरों के सबसे छोटे समूह को स्टॉक कहा जाता है. ‘स्टॉक्स’ का इस्तेमाल आम तौर पर कई कंपनियों के शेयरों का स्वामित्व के हिस्से को संदर्भित करने के लिए किया जाता है.
इक्विटी शेयर का सीधा मीनिंग सामान्य शेयर होता है. आम बोलचाल में निवेशक जो शेयर खरीदते या बेचते हैं, उसे इक्विटी शेयर ही कहा जाता है.
परिभाषा – इक्विटी शेयर वे शेयर हैं जो संयुक्त स्टॉक कंपनियां लंबी अवधि के वित्तपोषण के मुख्य स्रोत के रूप में आम निवेशकों के लिए जारी करती है.
दूसरा परिभाषा – इक्विटी शेयर एक प्रकार का शेयर है जो कंपनी द्वारा जारी किये गये सभी शेयरों में से सबसे बड़ा हिस्सा होता है, निवेशक इन शेयरों को खरीद करके कंपनी में अल्प मालिकाना हक प्राप्त करते हैं.
इक्विटी शेयर धारक शेयर खरीदने के बाद कंपनी में अल्प मालिकाना प्राप्त करने के साथ-साथ कंपनी के बोर्ड मीटिंग में मतदान करने के भी हकदार होते हैं. प्रेफरड शेयर धारकों को कंपनी में अल्प मालिकाना हक मिल जाता है किंतु उसे मतदान करने का अधिकार नहीं होता है.
इक्विटी शेयर धारक अपने शेयरों को किसी दूसरे निवेशकों को उचित मूल्य ले करके बेच सकता है. यही नहीं कंपनी के फायदे (मुनाफा) में लाभांश लेने का भी हक रखता है.
इक्विटी शेयर में इक्विटी शब्द का प्रयोग होना – Technical
आपने कभी सोचा है कि शेयर शब्द के आगे इक्विटी शब्द का प्रयोग क्यों होता है? इसी इक्विटी शब्द के वजह से कभी-कभी निवेशकों का पूरा पूंजी डूब जाता है. इसके पीछे के टेक्निकल पहलुओं को समझ लीजिए.
‘इक्विटी’ कंपनी में कुल स्वामित्व हिस्सेदारी को कहा जाता है. इक्विटी से ही कंपनी में स्वामित्व तय होता है. याद रखिएगा इक्विटीधारकों को हिस्सेदारी ऋण के भुगतान के बाद के बचे हुए संपत्ति में स्वामित्व (हिस्सा) मिलता है.
कंपनी डूबने की स्थिति में, कंपनी के बचे हुए कुल एसेट्स के नीलामी के बाद जो पैसे आते हैं. उस पैसे से सबसे पहले कंपनी के ऊपर जो भी कर्ज है उसको अदा किया जाता है.
डूबे हुए कंपनी के कर्ज अदायगी के बाद, अगर उसके पास पैसे बच जाए तो प्रेफरड शेयर धारकों दिया जाता है. प्रेफरड शेयर धारकों को पूर्ण भुगतान करने के बाद फिर भी पैसा बच जाए तो आखिर में नंबर इक्विटी शेयर धारकों का आता है.
अब तक जो देखा गया है कि डूबने वाली कंपनी ज्यादातर समय बैंक के लोन को भी अदा नहीं कर पाती है. उसी केस देखने को मिले हैं जहां पर बैंक कर्ज वापस करने के बाद, प्रेफरड शेयर धारकों कुछ पैसा मिला है.
अब तक किसी भी केस में यह नहीं देखा गया है कि, डूबने वाले कंपनी के बचे हुए पैसे से इक्विटी शेयर धारकों को भुगतान किया जाए. यही कारण है कि, कंपनी के कंगाल या डूबने पर इक्विटी शेयर धारकों भुगतान नहीं मिल पाता है.
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