Meaning Of Preference Shares In Hindi और प्रीफरड शेयर के प्रकार

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मीनिंग ऑफ preference Share
इस लेख के माध्यम से आपको प्रीफरड शेयर के बारे में ए टू जेड जानकारी दी जाएगी.

Preference Share Meaning In Hindi

  • अधिमान्य स्टॉक
  • पसंदीदा शेयर
  • पसंदीदा स्टॉक 
  • वरीयता शेयर
  • प्रीफरड इक्विटी
  • पूर्वाधिकार अंश
  • अधिमान अंश. 

Preference Share या Preferred Shares को शुद्ध हिंदी में अधिमान्य स्टॉक और वरीयता शेयर के तौर पर संबोधित किया जाता है. 

वरीयता शेयर, जिसे “पसंदीदा स्टॉक” या केवल “वरीयता” के रूप में भी जाना जाता है, एक विशेष प्रकार का स्टॉक है जो कंपनियों द्वारा निवेशकों को जारी किया जाता है। 

इस प्रकार की इक्विटी के नियमित सामान्य शेयरों की तुलना में कुछ फायदे और नुकसान हैं, लेकिन मुख्य विशिष्ट विशेषता यह है कि वरीयता शेयरों को लाभांश के भुगतान के मामले में अन्य इक्विटी शेयरों पर प्राथमिकता दी जाती है।

हिंदी में, “विभागित विशेष” शब्द का प्रयोग वरीयता शेयरों के लिए किया जाता है। ये विशेष प्रकार के शेयर अपने धारकों को लाभांश भुगतान के संबंध में तरजीही अधिकार प्रदान करते हैं और परिसमापन की स्थिति में आम शेयरधारकों की तुलना में संपत्ति पर उनका अधिक दावा होता है। 

वरीयता शेयरधारक मतदान के अधिकार के हकदार नहीं हैं, हालांकि आम शेयरधारकों की तुलना में वे आम तौर पर अधिक अनुकूल कर उपचार प्राप्त करते हैं।

प्रीफरड शेयर क्या होता है? 

शुरुआत शेयर की परिभाषा से करते हैं. किसी भी कंपनी के उन मार्केट कैपिटल में सबसे छोटी हिस्सेदारी की इकाई को शेयर कहते हैं. कंपनी में हिस्सेदारी रखने वाले व्यक्ति को शेयर धारक कहा जाता है. 

आमतौर पर, निवेशक ट्रेडिंग के दौरान जो शेयर करते हैं उस शेयर को इक्विटी या जनरल शेयर कहते हैं. प्रीफरड शेयर एक दूसरा प्रकार का शेर है जो इक्विटी शेयर से अलग होता है. 

प्रीफरड शेयर को कोई भी निवेशक शेयर बाजार के स्टॉक एक्सचेंज से नहीं खरीद सकता है. यह एक खास प्रकार का शेयर है जिसे कंपनी अपने किसी खास लोगों या संस्था के लिए जारी करती है. 

प्रीफरड शेयर कुछ मेरिट एवं डिमैरिट्स हैं. जिसे आप को जान लेना चाहिए. उससे पहले आपको इस शेयर के प्रकार के बारे में भी जान लीजिए. 

प्रीफरड शेयर कितने प्रकार के होते हैं?

संचयी वरीयता शेयर (Cumulative preference shares) 

कंपनी के किसी भी लाभांश को प्राप्त करने का पहले अधिकार संचयी शेयरधारकों को होता है. अधिकार संचयी शेयरधारकों पूरा देने के बाद, बचत होने की स्थिति में ही इक्विटी शेयर धारकों को लाभांश में हिस्सेदारी दिया जाता है. 

गैर-संचयी वरीयता शेयर (Non-cumulative preference shares) 

गैर-संचयी शेयरधारक किसी भी बकाया लाभांश का दावा नहीं कर सकते हैं. ये शेयरधारक केवल तभी लाभांश पा सकते हैं जब कंपनी मुनाफा कमाती हो. 

परिवर्तनीय वरीयता शेयर (Convertible preference shares) 

जैसा कि नाम से ही आपको पता चल रहा होगा, ये शेयर परिवर्तनीय हैं. परिवर्तनीय शेयरधारक अपने प्रीफरड शेयरों को एक विशिष्ट अवधि में इक्विटी शेयरों में परिवर्तित कर सकते हैं. 

यह बात याद रखेगा कि, शेयरों के transfer को कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर द्वारा अधिकृत करने की आवश्यकता होती है. 

प्रीफरड शेयर के मेरीट्स 

कंपनी के दिवालिया या बंद या डूबने की स्थिति में, कंपनी की नीलामी होती है. नीलामी से जो भी पैसा वसूल होता है, उससे कंपनी द्वारा लिए गए कर्ज की अदायगी होती है (अगर उस कंपनी ने बैंक या किसी अन्य संस्था से कर्ज लिया हो). 

कंपनी के कर्ज अदायगी के बाद जो भी धन बच जाता है, सबसे पहले वरीयता प्रीफरड शेयर धारकों के मिलता है. प्रीफरड शेयर धारकों भुगतान देने के बाद, बचे हुए धन से इक्विटी शेयर धारकों को दिया जाता है. 

ज्यादातर समय देखा जाता है कि, कंपनी के कर्ज अदायगी के बाद कभी कभार प्रीफरड शेयर धारकों नंबर आ जाता है. इक्विटी शेयर धारकों के लिए धन बचने की गुंजाइश बहुत कम रह जाती है. 

प्रीफरड शेयर कुछ डिमैरिट्स भी हैं

प्रीफरड शेयर धारकों को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के मीटिंग में वोटिंग का कोई अधिकार नहीं होता है. हालांकि कंपनी के द्वारा आयोजित अन्य कार्यक्रमों में वे हिस्सा ले सकते हैं. 

कोई प्रीफरड शेयर धारक चाहते हैं कि अपना प्रीफरड शेयर को बदलकर के इक्विटी शेयर कर लें तो इसके लिए उसे बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की सहमति लेना आवश्यक है. 

इक्विटी शेयर होल्डर को प्रीफरड शेयर के बारे में क्यों जानना चाहिए

शेयर मार्केट का यह बहुत ही टेक्निकल कंसेप्ट है. अगर आप एक निवेशक है और किसी नए कंपनी में निवेश करना चाहते हैं. तो सबसे पहले आपको कंपनी के कुल कर्ज के बारे में पता कर लेना चाहिए. दूसरी बड़ी बात की कंपनी जब बंद या नीलाम होगी तो बेचे जाने के बाद ऐसे से कितने पैसे निकलेंगे. 

आप जानते हैं जब कंपनी डूबती है तो नीलामी के बाद सबसे पहले कर्ज अदायगी की जाती है. कर्ज अदायगी के बाद जो भी पैसा बनता है वह सबसे पहले प्रीफरड शेयर फोल्डरों को दिया जाता है. 

उसके बाद अगर पैसे बजाएं तभी नंबर इक्विटी शेयर होल्डर का आता है. मान लीजिए कि जिस कंपनी में आप निवेश करने जा रहे हैं उस कंपनी को पहले से ही बहुत ज्यादा कर्ज है. यही नहीं हो सकता है कि वह कंपनी ने अपने 25 पर्सेंट तक शेयर अपने प्रीफर शेयर के तौर जारी कर दिया हो. 

बात यहीं पर खत्म नहीं होती है, जिस कंपनी में आप निवेश कर रहे हैं हो सकता है कि वह एक सॉफ्टवेयर की कंपनी है. नीलामी के बाद सॉफ्टवेयर कंपनी से ज्यादा पैसा बाहर नहीं आएगा. 

Conclusion Points

उसके जगह अगर कोई पैट्रोलियम रिफायनिंग कंपनी हो तो उसके इंफ्रास्ट्रक्चर बैच करके ज्यादा पैसे निकलेंगे. इसीलिए कहा जाता है कि एक इक्विटी शेयर खरीदने से पहले आपको कंपनी के लोन एवं उसके बिकने वाली इंफ्रास्ट्रक्चर की जानकारी के साथ-साथ प्रीफर शेयर फोल्डरों की संख्या के बारे में पता कर लेना चाहिए.

लेखक के तौर पर आपसे प्रश्न पूछना चाहता हूं कि आपको यह आर्टिकल कैसा लगा जरूर कमेंट बॉक्स में लिखेगा.

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